06-10-81  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन

"दादी जी, जयन्ती बहन और लच्छू बहन के विदेश सेवा से वापिस आने पर बापदादा के उच्चारे हुए महावाक्य"

आज जहान के नूर अपने नयनों के सितारों से मिलने आये हैं। नूरे रत्नों से मिलने आये हैं। सारे जहान की जिसमें नजर है, उसकी नजर किसमें हैं? जिसको विश्व याद करता, वह किसको याद करता है? जिसकी विश्व महिमा गाता वह स्वयं किसकी महिमा गाते? तो बड़ा कौन हुआ? बच्चे वा बाप? तो बापदादा ऐसे नयनों के नूरों से मिलने आयें हैं। जिन बच्चों ने बाप के प्रति वा सेवा के प्रति स्वयं को न्योछावर किया, ऐसे बच्चों को रिटर्न देने के लिए बापदादा भी न्योछावर होते हैं।

बाप के आगे आज ऐसे अमूल्य रत्न सामने हैं। चाहे कहाँ भी हैं, शरीर से दूर हैं लेकिन आज की सभा में आप सबके साथ, बाप के सामने साकार हैं, आज किसके सामने बाप बैठे हैं, जानते हो? आज बाप के सामने अति सिकीलधे, सदा दिल तख्तनशीन 9 रत्न सामने हैं। अष्ट और इष्ट आत्मायें सामने हैं। वह भी जान रहे हैं कि हमें बापदादा याद कर रहे हैं। दिव्य दूरदर्शन में वे भी देख रहे हैं। ऐसे रत्नों की विशेषताओं की बापदादा सदा माला सिमरण करते हैं। बाप सदा ऐसे रत्नों को देख कौन सा गीत गातें हैं? वह गीत सुना है? कौन सा? बाप दादा का गीत भी शार्ट है, लम्बा नहीं है, बाप का यही गीत है - ‘‘वाह मेरे बच्चे, वाह!'' तो यह गीत सुनाई देता है? कितनी बार सुनते हो? बच्चे क्या रेस्पान्स देते हैं? बाप तो है एक और बच्चे हैं अनेक। तो बाप सब बच्चों का गीत सुनते हैं। बहुत मजा आता है गीत सुनने में। कोई कैसा गाता है। सुनायें कैसे गाते हैं? कोई कहते - ‘‘वाह बाबा वाह'' कोई कहते ''वाह मेरा बाबा वाह!’’। और कोई गाते ''हा बाबा हा’’ । और भी सनायें- कोई मजबूरी से गाते हैं, कौन-सी मजबूरी? क्योंकि जानते हैं कि बाप को याद करने के बिना मिलना कुछ नहीं हैं, इसलिए याद करना पड़ेगा, ''वाह बाबा वाह’’ का गीत गाना ही पड़ेगा। एक का होता है - मन के सितार का साज और दूसरे का होता है - मुख का साज। तो बापदादा गीत तो सुनेंगे ना! कौन सा गीत गाते हैं। क्या बाप और बच्चों की कहानियाँ सुनायें? एक-एक की अपनी कहानी है और सबकी कहानियाँ इकठ्ठी करो तो कितनी हो जायेंगी? एक-एक की रोज की कहानी भी अलग-अलग है। तो बाप को तो सुनना पड़ेगा या नहीं? आप लोग उल्हना देते हो ना कि बाबा वहाँ क्या करते हैं? वहाँ भी यही काम करते हैं। जो साकार में करते थे वही करते हैं। साकार में समय ज्यादा लगता था, अभी समय कम लगता है।

आज तो विशेष बच्चों की सेवा का रिटर्न देने के लिए आये है। जैसे बच्चे स्नेह से सेवा के बन्धन में बंधे हुए है वैसे बाप भी बच्चों के स्नेह में बंधा हुआ है। (जयन्ती बहन से) आज कहाँ मिल रही हो? बापदादा आज विशेष कहाँ आये हैं? मधुबन में तो आतें ही हैं, लेकिन यह सभा क्या है जिसके बीच में मिल रहे हैं। लण्डन में विशेष कहाँ मिलती हो? बापदादा आज गार्डेन में मिल रहे हैं, यह अल्लाह का बगीचा है ना! क्योंकि गार्डेन में मिलना अर्थात् बेहद में मिलना। बापदादा के लिए यह बगीचा सबसे अच्छा है। वे बगीचे तो फिर बैकुण्ठ के बगीचे हैं, उनके आगे यहाँ के यह बगीचे क्या हैं? अच्छा- ''जी हाजर’’ तो हो गये ना! मास्टर हजूर के आगे जी हाजर हो गये। सभी को देख करके भी खुशी हो रही है। सभी को सेवा के उमंग और उत्साह पूर्वक करने की सफलता की बधाइयाँ हैं। सेवा में लगन से एक दो से आगे जाने की रेस अच्छी कर रहे हैं। रीस नहीं, रेस कर रहे हैं। इसलिए मैजारिटी विदेश सेवा के निमित्त बने रत्न रिटर्न अच्छा दे रहे हैं।

लण्डन फाउन्डेशन है इसलिए दस वर्ष के अन्दर जो सेवा की है बापदादा उसके रिटर्न में कौन सा दीपक जगायेंगे? बाप दादा चारों ओर के विदेशी बच्चों में से जो विशेष सेवा में दिन-रात लगे हुए हैं, उन विशेष आत्माओं की विशेषता के दीपक जगायेंगे। गुणों का घृत डाल विशेषताओं के दीपक जगा रहे हैं। बधाई हो, सेवा की बधाई हो! हाँगकाँग वालों को भी यही गीत सुनाना, उनके भी 10 वर्ष हुए हैं। आज दोनों को 10 वर्ष की मुबारक। लण्डन निवासी मुरबी बच्चे विदेश में मास्टर ज्ञान-सूर्य के स्वरूप में सेवा के उमंग उत्साह की किरणें अच्छी फैला रहे हैं, इसलिए ज्ञान सूर्य बाप, मास्टर ज्ञान सूर्य बच्चों को बधाई दें रहे हैं।

आस्ट्रेलिया वालों ने भी त्याग और भाग्य, त्याग द्वारा भाग्य का सबूत अच्छा दिखाया है। बापदादा आस्ट्रेलिया की सेवा के प्रति निमित्त बने हुए बच्चों को एकरस, अचल, अडोल रहने के सर्टीफिकेट की मुबारक देते हैं। ऐसे ही नैरोबी वालों की भी विशेषता के कारण बापदादा मुबारक देते हैं। वह विशेषता कौन सी है? जिगर से बाप और बाप के सेवा की लग्न में बहुत अच्छे हैं। सर्कमस्टांन्स को नहीं देखते, सेवा को देखते हैं। सेवा में हम सब एक हैं, यह सबूत की विशेषता अच्छी दिखाई है। सेवा से प्यार अर्थात् बापदादा से प्यार। मिटाने और समाने दोनों की अच्छी कमाल दिखाई है। इसलिए बापदादा ऐसी विशेषता वाले बच्चों को महावीर बच्चे कहते हैं।

अमेरिका भी कम नहीं है, अमेरिका वालों ने बड़े आवाज फैलाने वाले माइक को तो पकड़ लिया है। सेवा का साधन सहज और श्रेष्ठ मिल गया है। जो भी अमेरिका के सेवाकेन्द्र हैं सभी वी.आई.पीज. की सर्विस में अच्छी सफलता को पा रहे हैं। अब विदेश में वी.आई.पीज. की सर्विस मुश्किल नहीं है ना! अब तो लण्डन में भी नाम बाला है।

तो इस वर्ष विदेश को वरदान प्राप्त हुआ है विशेष व्यक्तियों की सेवा का। कितने वर्ष मुश्किल लगा? और सहज कैसे हो गया, मालूम पड़ा? तो विदेश में चारों ओर के मुख्य स्थानों का नाम ले लिया-लेकिन और भी चारों ओर सेवा की अच्छी लहर चल रही है। ग्याना हो, जर्मनी हो, जो भी हो सबका नाम बोलना, मोरीशियस भी। हर स्थान की अपनी-अपनी विशेषता है। अभी इन्होनें विशेष प्रोग्राम से विशेष आत्माओं को तैयार किया है, वैसे चारों ओर अच्छा उमंग-उत्साह है, इसलिए सभी का नाम नोट कर लेना।

दादी से :- ''बैलेंन्स और ब्लैसिंग का अनुभव किया? सफर ठीक रहा? (लच्छू बहन से) यह भी विदेश की यात्रा करके आई। इसने भी तपस्या की है ना? यह भी लकी है जो बचपन से श्रेष्ठ संग में रही है। अंग-संग रही है। ऐसा भाग्य भी सबका नहीं होता है। अभी विदेश के रिटर्न में क्या करेंगी? भाषण किया कहाँ? अभी प्रैक्टिस करो, क्लास भी कराने की प्रैक्टिस करो। बहुत डायरेक्ट सुना है जो नाखून में छिपाकर बात कहने वाली, वह भी सुनी है, उसका रिटर्न तो देना है ना! अच्छा- सर्विसएबुल बच्चे जहाँ जाते हैं तो सर्विस का सबूत जरूर देते हैं। दिया ना? सर्विसएबुल अर्थात् सेवा, सेवा और सेवा। देखना भी सेवा, बोलना भी सेवा, चलना भी सेवा और करना भी सेवा। जो 5 चित्र दिखाते हो ना- वह ‘‘सी नो..'' दिखाया है और यहाँ हाँ वाले हैं। तो 5 ही बातों में वह ‘‘ना'' है, यह ‘‘हाँ'' हैं। इसको कहा जाता है सर्विसएबुल। सर्विसएबुल का चित्र क्या हुआ? सेवा करना बहुत अच्छा लगा ना? यह भी अनुभव हुआ। हर स्थान को विशेषताओं से सम्पन्न बनते-बनते चारों ओर सेवा में सम्पन्नता आ जाएगी। इसलिए यह भी अनुभव अच्छा है।

जमुना का किनारा भी आया है। (दिल्ली ग्रुप) और साथ-साथ जमुना के किनारे पर नाटक करने वाले कर्नाटक भी आया है। बम्बई तो चुंगे में आ गई है। अच्छा है, जमुना का किनारा भी है और जमुना के बीच में गार्डन भी है, तो उसके बीच में बापदादा से मिल रहे हो। फिर भी सेवा का फाउन्डेशन तो दिल्ली है। और सभी ने सेवा का पाँव डाला भी दिल्ली में है। मैजारिटी महारथियों ने सेवा के प्रति दिल्ली में पाँव डाल रखा है। अच्छा, फिर सुनायेंगे दिल्ली को क्या करना है। आज तो बगीचे में बातें कर रहे हैं ना!

ऐसे खेल में खेल देखने वाले, खेला और मेला दोनों का अनुभव करने वाले, सदा बाप के गुण गाने वाले, साथ-साथ स्वयं को बाप समान मास्टर गुण मूर्त्त बनाने वाले, विश्व के सदा शुभाचिंतक, विश्व का सदा कल्याण करने वाले विश्व कल्याणकारी, ऐसे श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद प्यार और नमस्ते।

दीदी जी से :- ‘‘उड़ता पंछी बन सेवा का पार्ट बजाते हुए अपने विश्राम के स्थान पर पहुँच गई? शार्ट और स्वीट सफर रहा। बापदादा भी बच्चों की हिम्मत और सेवा की उमंग पर वारी जाते हैं। हिम्मत औषधि का काम कर लेती है। कितनों को ब्लैंसिंग दी? अभी आप विशेष आत्माओं का है ही ब्लैंसिंग देने का पार्ट। चाहे नयनों से दो, चाहे मस्तकमणी द्वारा। बोलने वाले तो बहुत हैं लेकिन अब आप लोंगो का कार्य है - ब्लैसिंग देना। जैसे साकार में देखा - लास्ट कर्मातीत स्टेज का पार्ट क्या रहा? ब्लैंसिंग देना। बेलेन्स की भी विशेषता और ब्लैसिंग की भी कमाल। फालो फादर। सहज सेवा भी यही है और शक्तिशाली भी यही है। वैसे जो भी शक्तिशाली वस्तु होती है वह जितनी शक्तिशाली उतनी ही रूप में बहुत कम, छोटी होती है। जैसे बीज शक्तिशाली है तो कितना छोटा होता है! एटम शक्तिशाली है और कितना छोटा। ऐसे ही आत्मिक स्मृति से ब्लैसिंग देना यह भी बहुत सहज और शक्तिशाली है। समय भी कम, मेहनत भी कम और रिजल्ट ज्यादा। और वह भी ज्यादा समय तक। अभी-अभी सुना, अभी-अभी भूला, नहीं। अनुभव हो जाता है ना! तो आप शक्तिशाली आत्माओं की अभी सेवा है - ब्लैंसिंग देना''

जयन्ती बहन से :- ‘‘आप में कितनी आत्मायें समयई हुई हैं? आज कितनी आत्मायें आप में समाई हैं? अच्छा है सर्विस में बहुत गैलप किया। लौकिक, अलौकिक, पारलौकिक तीनों की बधाई आप आत्मा को मिली। अच्छा पार्ट बजा रही हो। लोक पसन्द है ना! इसलिए ही इस पाइंट की स्मृति के कारण ही सफलाता है। सेवा में सफलता का आधार ही है - करन-करावनहार बाप की स्मृति। इसलिए सेफ भी हो और सफल भी हो ना? बाप को तो फालो किया है लेकिन निमित्त बनी हुई अपनी दादी (जानकी दादी) को भी फालो किया है, गुणों को फालो किया है। अच्छा है। जनक को विशेष याद देना। उसको को भी प्रत्यक्षफल मिला है - निरोगी काया। काया कल्पतरू हो गई ना!

वैसे तो ग्याना के फाउन्डेशन के आधार पर अमेरिका के वी.आई.पीज. निकले, अमेरिका का भी फाउन्डेशन गयाना है। विदेश में फर्स्ट नम्बर वी.आई.पीज युगल ग्याना का ही है। इसलिए बहुत-बहुत लवली हैं, दोनों की सेवा में विशेषता है। एक दो से आगे हैं। ऐसा भी कोई विरला ही फूल होता है। इसके कारण नाम भी अच्छा फैल रहा है। बच्चियाँ भी अच्छी हैं। मकान भी अच्छा तैयार किया है। विघ्न को निर्विघ्न बना दिया, इसलिए सारा परिवार लवली परिवार है। लवली भी है लेकिन लवलीन भी है। और आने वाले जो भी सभी ब्राह्मण हैं, उनकी लगन बाप और सेवा से अच्छी है। ज्यादा मेहनत लेने वाले नहीं हैं, अच्छे हैं। कोई-कोई स्थान पर यह विशेषता होती है, मेहनत कम लेते हैं। गयाना की विशेषता है - मेहनत कम लेते, लग्न में अच्छे हैं। इसलिए सभी को याद देना और यही विशेषता की सौगात देना।

पार्टियों से :- ''संगमयुग पर सबसे बड़े ते बड़ा खज़ाना कौन सा मिलता है? खुशी का। खुशी का खज़ाना सदा सम्पन्न रहे ऐसे नहीं कभी थोड़ी खुशी, कभी बहुत खुशी। जब अविनाशी अखुट बेहद का खज़ाना है तो कभी कम, कभी जास्ती, यह नहीं। सदा खज़ाने की प्राप्ति में एकरस रहो। खुशी में रहते हैं, यह सिर्फ नहीं, लेकिन एकरस और निरन्तर रहते हैं। नम्बर इस आधार पर बनेंगे। सिर्फ निरन्तर हैं, एकरस नहीं तो भी सेकेण्ड नम्बर हो गए। लेकिन निरन्तर और एकरस दोनों ही है तो नम्बरवन हो गये। अगर किसी झमेले में आ जाते हो तो फिर खुशी का झूला ढीला हो जाता है, तेज नहीं, रूक-रूककर झूलेंगे। इसलिए सदा खुशी के झुले में झुलो। संगमयुग अनुभव का युग है, यही विशेषता है, इस युग की विशेषता का लाभ उठाओ।’’